रचना
जनमों से था मुझको
जिस पल का इंतज़ार
वो रचना आयी है आज
ले कर प्रेम का अवतार
तनहा था मैं प्यासा था मैं
ले कर प्रेम का अवतार
तनहा था मैं प्यासा था मैं
जन्मों जन्मों कि ये प्यास
सूना था निस्तेज था
मेरे मन का आकाश
मेरे मन का आकाश
तुमने अपने प्रेम से
मेरे जीवन मे रंग भर दिए
मेरे जीवन मे रंग भर दिए
बुझा दी मेरी अमिट प्यास
आज का ये पल
सिर्फ मेरा है और तुम्हारा है
अपनी रचना अपनी धरती
और ये वक़्त हमारा है
बस तुम हो और मैं हूँ
कोई नही है मध्य हमारे
आओ आज मिल जाएँ हम
बन कर प्रेम के धारे
तुम्हारे मुख का प्रथम शब्द
मेरे मन को आलोकित कर देता है
मेरी निशब्द नीरवता मे
नया सा कलरव भर देता है
मुझे अपनी रचना मे
नए नए रंग दिखायी देते हैं
उसकी आँखों मे सुर्य
चेहरे मे चंद्र
तो बातों मैं सृष्टी के
रहस्य सुनायी देते हैं
उसका अस्तित्त्व मुझे जीना सिखाता है
मेरे निस्तेज जीवन मे तेज भरता है
मुझे कारण देता है जीवन जीने का
और मेरी रचना को चमचमाता है
वो जब मेरी और देखती है
तो उसकी आँखों मे मुझे
आकाश नजर आता है
मेरा अस्तित्त्व इस आकाश के आगे
कहीँ खो सा जता है
मैं बूँद हूँ
मैं बूँद हूँ
वो समुद्र है
मैं खुद को खो कर
पूरा समुद्र पा लेता हूँ
अपना अस्तित्त्व मिटा कर खुद को
असीम रचना मे मिला लेता हूँ
रचना कि कोई परिधि नही
रचना कि कोई सीमा नही
ना आदि है ना अंत है
मेरी रचना अनंत है
जब मैं खुद को
रचना मे खो देता हूँ
तो मुझे भी अनंतता
असीमितता का अनुभव होता है
रचना का एक भाग बन कर
मैं उसे अपना एक भाग बना लेता हूँ
समां जाता हूँ उसमे और
उसको खुद मे समां लेता हूँ
मेरा मन तुम हो
मेरा तन तुम हो
मेरा ह्रदय तुम हो
और जीवन भी तुम हो
मेरा मन मेरा जीवन मेरी धड़कन
मेरा मन मेरा जीवन मेरी धड़कन
मेरे होने का का कारण
मेरी उमंग मेरी सोच
मेरी सारी कल्पना
बस तुम तुम तुम ही तो
मेरी रचना ...........
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